A stanza penned by Javed Akhtar for the movie Border illustrating the feelings of a soldier torn between his duty and spending some time with his newly-wed wife.
मैं कहीं भी रहूँ ए सनम
मुझको है ज़िंदगी की कसम
फ़ासले आते जाते रहे
प्यार लेकिन नहीं होगा कम
जिन्हें चाहूँ जिन्हें पूजूँ
उन्हें देखूं उन्हें छू लूँ
ज़रा बातें तो कर लूँ
ज़रा बाहों में भर लूँ
मैं इस चाँद से माथे को चूम लूँ
तो चलूँ तो चलूँ ...
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